News Analysis / लूनर लैंडिंग मिशन में चुनौतियाँ
Published on: August 23, 2023
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में रूस का लूना-25 चंद्रमा की सतह पर दुर्घटनाग्रस्त हो गया, जिससे पूर्व सोवियत संघ द्वारा आखिरी लैंडिंग के 47 साल बाद चंद्रमा की सतह पर भेजा गया उसका पहला मिशन समाप्त हो गया।
भारत का चंद्रयान-3 चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास उतरने वाला पहला अंतरिक्ष यान बनने की राह पर है।
रूस का लूना-25 चंद्र अन्वेषण में स्पर्द्धा एवं दिलचस्पी दोनों दर्शाता है जिस कारण उसने लूना शृंखला को जारी रखने की योजना बनाई।
लूना-25 मिशन:
परिचय:
लूना 25 मिशन, जिसे मूल रूप से लूना-ग्लोब (Luna-Glob) नाम दिया गया था, 1976 में शुरू की गई ऐतिहासिक लूना शृंखला में शामिल होने से पहले इसके विकास में दो दशकों से अधिक का समय लगा।
इस मिशन का उद्देश्य अंतरिक्ष अन्वेषण और भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता में इसके महत्त्व को देखते हुए चंद्रमा की सतह तक रूस की पहुँच को सुरक्षित करना था।
रूस और चीन अंतर्राष्ट्रीय चंद्र अनुसंधान स्टेशन (International Lunar Research Station- ILRS) का नेतृत्व करते हैं, जबकि अमेरिका आर्टेमिस समझौते (Artemis Accords) का नेतृत्व करता है।
असफलता:
लूना-25 अंतरिक्ष यान को अपनी परिचालन सीमा को पार करते हुए एक तकनीकी खराबी का सामना करना पड़ा।
यह विफलता इसकी वृत्ताकार कक्षा को लैंडिंग-पूर्व निचली कक्षा में स्थानांतरित करने के प्रयास से जुड़ी हुई प्रतीत होती है।
इस मैन्यूवर (Maneuver) के दौरान अत्यधिक प्रणोद (Thrust) और दिशा में विचलन के कारण यान चंद्रमा की सतह पर दुर्घटनाग्रस्त हो गया।
इस घटना के दौरान रासकासमास का संपर्क टूट गया।
रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण रूस ने दुनिया के विभिन्न हिस्सों में देशों द्वारा संचालित उपग्रह ट्रैकिंग सिस्टम का उपयोग करने के अपने विशेषाधिकार खो दिये। रासकासमास केवल तीन स्टेशनों (दो रूस में और एक रूस द्वारा अधिकृत क्रीमिया में) पर लूना-25 से संपर्क कर सकता था तथा अंतरिक्ष यान से सिग्नल प्राप्त कर सकता था।
रूस के विपरीत ISRO को चंद्रमा के चारों ओर चंद्रयान 3 को ट्रैक करने के लिये राष्ट्रीय वैमानिकी एवं अंतरिक्ष प्रशासन (National Aeronautics and Space Administration- NASA) और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (European Space Agency- ESA) से सहायता मिल रही है।
सफल चंद्र लैंडिंग में जटिलताएँ:
चंद्रमा पर लैंडिंग में जटिलता:
चंद्र लैंडिंग में चंद्र कक्षा से चंद्रमा की सतह तक एक चुनौतीपूर्ण अवरोह शामिल होता है, जिसे अक्सर "15 मिनट्स ऑफ टेरर" कहा जाता है।
इस महत्तवपूर्ण चरण के दौरान अंतरिक्ष यान की गति, प्रक्षेपवक्र और ऊँचाई पर सटीक रूप से नियंत्रण की आवश्यकता के चलते जटिलता की स्थिति उत्पन्न होती है।
ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य:
मानव दल द्वारा छह सफल लैंडिंग सहित 20 से अधिक सफल लैंडिंग के बावजूद भी यह तकनीकी त्रुटि हुई।
सबसे सफल चंद्र लैंडिंग 1966 से 1976 के बीच एक दशक के भीतर हुई, अपवाद के रूप में पिछले दशक में तीन चीनी लैंडिंग हुई।
1960 और 1970 के दशक के दौरान 42 प्रयासों में 50% सफलता दर के साथ चंद्र लैंडिंग तकनीक उतनी उन्नत नहीं थी।
समकालीन चंद्र मिशन सुरक्षित, लागत-कुशल और ईंधन-कुशल प्रौद्योगिकियों से तैनात किये जाते हैं लेकिन परीक्षण और सत्यापन की आवश्यकता होती है।
जटिल प्रणोदन:
चंद्र लैंडिंग में अवरोह से लेकर अंततः उतरने तक नियंत्रित मैन्यूवर (Maneuver) का एक क्रम शामिल होता है। गति और ऊँचाई को सटीक रूप से प्रबंधित करने के लिये सटीक प्रणोदन प्रणाली को नियोजित करना आवश्यक होता है।
तापीय चुनौतियाँ:
चंद्रमा पर तापमान में अत्यधिक परिवर्तन, चिलचिलाती गर्मी से लेकर जमा देने वाली ठंड अंतरिक्ष यान प्रणालियों के लिये चुनौतियाँ पैदा करते हैं। ऐसे में उपकरण के व्यवस्थित संचालन हेतु तापीय सुरक्षा तथा इन्सुलेशन महत्त्वपूर्ण हैं।
चंद्र लैंडिंग प्रयासों में हालिया विफलताएँ और सफलताएँ:
विफलताएँ:
भारत, इज़रायल, जापान और रूस के सभी मिशनों को लैंडिंग प्रक्रिया के दौरान चुनौतियों का सामना करना पड़ा, जिसके परिणामस्वरूप चंद्रमा की सतह पर कई दुर्घटनाएँ हुईं।
इसरो का चंद्रयान-2: यह यान किसी खराबी के कारण वांछित गति हासिल नहीं कर सका और मिशन असफल रहा।
बेरेशीट (इज़रायल), हकुतो-आर (जापान): इन मिशनों में विभिन्न प्रकार की खराबी के कारण लैंडिंग योजनाएँ बाधित हुई।
सफलताएँ:
चीन के चांग'ई-3, चांग'ई-4 और चांग'ई-5 मिशनों ने चंद्रमा पर सफल लैंडिंग की।
आगे की राह
चंद्रयान-2 के विफल होने के बाद भारत द्वारा चंद्रयान-3 लॉन्च किया जाना अपनी असफलताओं से सीखने के महत्त्व का सबसे नवीनतम उदाहरण है।
हालिया विफलताएँ चंद्रमा पर सॉफ्ट-लैंडिंग की जटिलता को दर्शाती हैं, साथ ही यह इस क्षेत्र में निरंतर प्रगति तथा चंद्र अन्वेषण के क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिये अंतरिक्ष एजेंसियों के दृढ़ संकल्प को भी दर्शाती हैं।
इन प्रयासों से लिये गए सबक भविष्य में अधिक विश्वसनीय और सफल चंद्र लैंडिंग प्रौद्योगिकियों के विकास में निश्चय ही योगदान देंगे।